जब मैरी कोरीना मैडुरो, विपक्षी नेता और वेन्टे वेनेज़ुएला को 10 अक्टूबर 2025 को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया, तो पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में हलचल मच गई। घोषणा नार्वेजियन नॉबेल समिति ने की, और समिति की चेयर बेरिट रीसेस-एन्डरसन ने कहा कि मैडुरो ने "विस्तारित होते निरंकुशता के बीच लोकतंत्र की ज्वाला जलाए रखी"। यह पुरस्कार न केवल व्यक्तिगत साहस का मान्यतान है, बल्कि वेनेज़ुएला में लोकतांत्रिक संघर्ष की वैश्विक मान्यता भी है।
मैडुरो का जन्म 1967 में काराकास, वेनेज़ुएला में हुआ था। उन्होंने यूनिवर्सिदाद कैथोलिका एंड्रेस बेल्लो से औद्योगिक इंजीनियरिंग और वित्त का अध्ययन किया। 1992 में 25 साल की उम्र में उन्होंने अटेनेआ फाउंडेशन की स्थापना की, जो सड़क पर रहने वाले बच्चों को शिक्षित करने के लिए काम करती थी।
2002 में वे सूमाते (Fundación para la Defensa de la Democracia y el Voto) के सह-संस्थापक बनीं, जो चुनावी निगरानी और मतदाता शिक्षा पर केंद्रित था। 2010 में उन्होंने मिरांडा राज्य के चाको, बरुता, एल हतिलो और लेओनसियो मार्टिनेज़ डी स्कुरे नगरपालिका के लिए राष्ट्रीय सभा में चुनाव लड़ा और 100,747 वोटों से जीत दर्ज की—एक रिकॉर्ड। असेंबली में उनका समय मानवाधिकार उल्लंघनों और आर्थिक संकट की आवाज़ बनने से पहचाना गया।
2014 में उन्होंने पैनामा के समर्थन से अमेरिकी ओएससी में मैडुरो शासन की मानवाधिकार हनन को उजागर किया, जिसके बाद राष्ट्रीय सभा के अध्यक्ष डियॉसडादो काबेलो ने उन्हें बिनाअधिकार निकाला—एक कदम जो अंतरराष्ट्रीय कानून की स्पष्ट उलंघना था।
नॉबेल समिति ने 2025 के पुरस्कार की घोषणा करते हुए बताया कि मैडुरो को "जनता को अपनी आवाज़ सुनाने का अधिकार, मतदान का अधिकार और प्रतिनिधित्व का अधिकार दिलाने" के लिए सम्मानित किया जा रहा है। समिति ने इस बात पर ज़ोर दिया कि "लोकतंत्र, शांति की बुनियाद है, चाहे वह राष्ट्रीय हो या अंतर्राष्ट्रीय"।
बेरिट रीसेस-एन्डरसन ने कहा, "मैडुरो ने निरंकुश शासन के सामने लोकतंत्र की जली हुई लौ को नहीं बुझने दिया। यह पुरस्कार वैश्विक स्तर पर लोकतांत्रिक ताकतों को नई ऊर्जा देगा।" यह बयान वैधता में जोड़ता है कि आज की दुनिया में लोकतंत्र कई जगहों पर पीछे हट रहा है, और वेनेज़ुएला में यह संघर्ष विशेष महत्व रखता है।
पुरस्कार समारोह नोबेल शांति पुरस्कार समारोहओस्लो, नॉर्वे में 10 दिसंबर को होगा। आधिकारिक तौर पर मैडुरो को समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है, लेकिन वे राजनीतिक उत्पीड़न के कारण छिपे हुए हैं, इसलिए उनकी उपस्थिति अभी अनिश्चित है।
अमेरिका, यूरोपीय संघ और कई दक्षिण अमेरिकी राष्ट्रों ने इस निर्णय की सराहना की। संयुक्त राष्ट्र के माननीय गॅब्रिएला मार्टिनेज़ ने कहा, "मैडुरो की साहसिकता इस यह साबित करती है कि न्याय और लोकतंत्र कभी नहीं मरते।" दूसरी ओर, वेनेज़ुएला के अध्यक्ष निकोलास मदुरो (निकोलास मदुरो) ने इस घोषणा को "विदेशी हस्तक्षेप" का हिस्सा बताया और घरेलू मीडिया में इसे बेईमानी से चित्रित किया।
वेनेज़ुएला के कई प्रमुख विपक्षी समूह, जैसे सोय वेनेज़ुएला के सह-संस्थापक एंटोनियो लेडेज़मा और डिएगो आर्रिया ने इस पुरस्कार को "आशा की नई रोशनी" कहा। उनका मानना है कि यह अंतरराष्ट्रीय समर्थन आगामी चुनावी दौर में दबाव बनाने में मदद करेगा।
नोबेल पुरस्कार ने मैडुरो को एक नई मंच पर रख दिया है, जहाँ वह अपनी आवाज़ को और भी बड़े पैमाने पर उठाने की संभावना रखती हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह पुरस्कार वेनेज़ुएला में संभावित राजनैतिक बदलाव को तेज़ कर सकता है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब अधिक सख्त प्रतिबंध और कूटनीतिक दबाव लागू करने की तैयारी में है।
वेनेज़ुएला के सुप्रीम ट्रिब्यूनल ऑफ़ जस्टिस (सुप्रीम ट्रिब्यूनल ऑफ़ जस्टिस) ने पिछले साल मैडुरो को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में पंजीकृत करने से इनकार किया था। अब इस निर्णय पर पुनर्विचार करने का दबाव बढ़ सकता है, खासकर जब अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों ने भी वेनेज़ुएला में मानवाधिकार उल्लंघन को दर्ज किया है।
विराम के रूप में, मैडुरो का समर्थन करने वाले कई युवा आंदोलन अब सोशल मीडिया पर अधिक सक्रिय हो चुके हैं, और उन्हें "डिजिटल लोकतंत्र" की नई लहर कहा जा रहा है। यह डिजिटल स्वरूप न केवल जानकारी फैलाने में मदद करता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समर्थन को भी तेज़ करता है।
अंतरराष्ट्रीय मान्यता से वेनेज़ुएला में विरोधी आंदोलन को नई ऊर्जा मिलेगी, विदेशी सहायता और दबाव बढ़ेगा, जिससे मार्चा कोरिया आदि के प्रायोजित आर्थिक प्रतिबंधों में बदलाव आ सकता है। इससे मानवाधिकार स्थिति में सुधार और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को तेज़ी से आगे बढ़ने की संभावना बढ़ेगी।
वर्तमान में मैडुरो वेनेज़ुएला में छिपी हुई हैं। सुरक्षा कारणों से उनकी उपस्थिति अभी अनिश्चित है, लेकिन नॉर्वे सरकार ने उन्हें विशेष सुरक्षा उपायों के तहत भाग लेने का विकल्प दिया है।
समिति ने कहा कि मैडुरो ने बहु वर्षियों तक निरंकुश शासन के सामने लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निष्पक्ष चुनावों के लिए संघर्ष किया है, जो शांति की बुनियाद है। उनका काम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकतंत्र की पुनरुत्थान में प्रेरणा स्रोत है।
मदुरो की सरकार ने इसे "विदेशी हस्तक्षेप" और "विरोधी तत्वों को बढ़ावा देने" के रूप में खारिज किया, और राष्ट्रीय मीडिया में इसे नकारात्मक रूप से प्रस्तुत किया। उन्होंने संकल्प किया कि वेनेज़ुएला की संप्रभुता कोई भी बाहरी दबाव सहन नहीं करेगी।
वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने अगले साल के चुनावों को निष्पक्ष मानने के लिए कड़े शर्तें रखी हैं। यदि दबाव और आंतरिक विरोध जारी रहता है, तो 2026 के चुनावी चक्र में वास्तविक प्रतिस्पर्धा की संभावना बढ़ सकती है।
मैडुरो को नोबेल मिलना बस एक चटपटे मसाले जैसा है-जैसे चिल्ली वाला पकोड़ा परोसा गया हो, पर अंदर में कड़वी हकीकत है। उनका संघर्ष अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर फ़्लैशिंग लाइट जैसा चमका है, और इससे देश के अंदर‑बाहर के लोग दाव कर रहे हैं कि वही असली परिवर्तन का इंधन है। लेकिन सच्चाई ये है कि न्याय और शांति की लड़ाई में अभी भी बहुत सारा धुआँ बँटा है।