बिहार में बिजली की जरूरत तेज़ी से बढ़ रही है। कृषि, उद्योग और घरों में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए राज्य ने थर्मल पावर पर बड़ा भरोसा रखा है। तो चलिए, जानते हैं कि अभी कौन‑कौन से थर्मल प्लांट काम कर रहे हैं और भविष्य में क्या योजनाएं हैं।
बिहार में अभी दो बड़े थर्मल प्लांट सक्रिय हैं – बिहार कोल‑फ्री थर्मल पावर प्रोजेक्ट (एनसीईपीसी) और बगही थर्मल पावर स्टेशन। एनसीईपीसी के 2 × 300 MW यूनिट्स कुल 600 MW की शक्ति पैदा करते हैं, जबकि बगही में 2 × 250 MW यानी 500 MW की क्षमता है। मिलाकर लगभग 1,100 MW की शक्ति राज्य की ग्रिड में योगदान देती है।
इन प्लांटों का मुख्य फ्यूल कोयला है, जिसे रेल और सड़क के माध्यम से लाया जाता है। हाल ही में कोयला की लागत में उतार‑चढ़ाव देखा गया, इसलिए सरकार ने कोयला की आपूर्ति को स्थिर रखने और लागत कम करने के लिए नई सप्लाइ चैन बनायी है।
थर्मल पावर चलाने में जल और पर्यावरण दो बड़े मुद्दे बनते हैं। जल उपयोग के लिए नदियों से पानी लिया जाता है, जिससे अन्य उपयोगकर्ताओं के लिए पानी कम पड़ सकता है। इसलिए कई प्लांट अब जल‑रिसायक्लिंग और रिवर्स ओस्मोसिस जैसी तकनीक अपनाते हैं, जिससे पानी की खपत को 30 % तक घटाया जा सके।
पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए फ्ल्यू गैस को साफ़ करने वाले स्क्रबर और इलेक्ट्रिक डस्ट परेसर लगाए जा रहे हैं। ये उपकरण एसओ₂ और नाइट्रोजन ऑक्साइड को बहुत कम कर देते हैं, जिससे वायु क्वालिटी बेहतर रहती है।
एक और चुनौती है लोड मैनेजमेंट। जब सौर और पवन ऊर्जा की उत्पादन कम होती है, तो थर्मल प्लांट को जल्दी‑जल्दी बढ़े लोड को संभालना पड़ता है। इससे लागत बढ़ती है। इसके समाधान के रूप में, राज्य ने स्मार्ट ग्रिड और बैटरी स्टोरेज सिस्टम का प्रोजेक्ट शुरू किया है, जिससे थर्मल प्लांट पर दबाव कम होगा।
बिहार सरकार ने 2026 तक अतिरिक्त 800 MW थर्मल क्षमता जोड़ने की योजना बनाई है। इसके लिए नया पाटना कोयला‑आधारित थर्मल पावर प्लांट तैयार किया जा रहा है, जो 400 MW से शुरू होकर दो चरणों में 800 MW तक पहुंचेगा। इस प्रोजेक्ट में लेआउट को मॉड्यूलर बनाया गया है, जिससे निर्माण समय कम हो और रखरखाव आसान हो।
साथ ही, सरकार हाइड्रोजन‑आधारित बर्नर टेस्ट कर रही है, जिससे कोयला के साथ हाइड्रोजन मिलाकर उत्सर्जन घटाया जा सके। यह एक लंबी अवधि की पहल है, लेकिन अगर सफल हो तो बिहार थर्मल पावर को क्लीन टेक्नोलॉजी की ओर एक बड़ा कदम कह सकते हैं।
इन सबके बीच, बिजली की कीमत को स्थिर रखने के लिए राज्य ने सब्सिडी योजना जारी रखी है, जिससे आम नागरिकों को भारी बिलों का सामना न करना पड़े।
संक्षेप में, बिहार का थर्मल पावर अभी भी बिजली की बुनियादी जरूरतों को पूरा कर रहा है, लेकिन जल, पर्यावरण और लागत की चुनौतियों के लिए नई तकनीक और योजनाएं तैयार हो रही हैं। अगर आप बिहार में रहने वाले ऊर्जा उपभोगकर्ता हैं या निवेशक, तो भविष्य की योजनाओं को देखना और समझना फायदेमंद रहेगा।
Adani Power को बिहार के भागलपुर जिले के पीरपैंती में 2,400 मेगावॉट के अल्ट्रा सुपर-क्रिटिकल थर्मल प्लांट के लिए 25 साल का पावर सप्लाई करार मिला। कंपनी ने ₹6.075 प्रति यूनिट की दर पर बोली जीती। लगभग ₹26,482 करोड़ की लागत से बनने वाली यह परियोजना 60 महीनों में पूरी होने का लक्ष्य रखती है। निर्माण के दौरान 10-12 हजार और चालू होने पर करीब 3,000 रोजगार मिलेंगे।