बिहार को बेसलोड बिजली देने के लिए एक बड़ा कदम सामने आया है। Adani Power ने बिहार स्टेट पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड (BSPGCL) के साथ 25 साल का पावर सप्लाई एग्रीमेंट साइन किया है। इसके तहत भागलपुर जिले के पीरपैंती में 2,400 मेगावॉट की नई अल्ट्रा सुपर-क्रिटिकल (USC) थर्मल पावर परियोजना लगाई जाएगी। यह ग्रीनफील्ड प्लांट तीन यूनिट्स (3×800 मेगावॉट) में बनेगा और बिजली सप्लाई दर ₹6.075 प्रति यूनिट तय हुई है—यही बोली इसे प्रतिस्पर्धी नीलामी में विजेता बनाती है।
यह परियोजना डिज़ाइन-बिल्ड-फाइनेंस-ओन-एंड-ऑपरेट (DBFOO) मॉडल पर बनेगी। अनुमानित निवेश करीब 3 अरब डॉलर (लगभग ₹26,482 करोड़) का है। पहली यूनिट को नियुक्ति तिथि से 48 महीनों में और पूरी क्षमता को 60 महीनों में चालू करने का लक्ष्य रखा गया है। कोयले की आपूर्ति के लिए केंद्र सरकार की SHAKTI पॉलिसी के तहत लिंकेंज सुरक्षित है, जिससे ईंधन की उपलब्धता का जोखिम काफी कम हो जाता है।
यह करार BSPGCL ने उत्तर और दक्षिण बिहार के वितरण कंपनियों (NBPDCL और SBPDCL) की ओर से किया है। प्लांट की शुद्ध आपूर्ति लगभग 2,274 मेगावॉट मानी जा रही है, क्योंकि थर्मल प्लांट में ऑक्सिलरी खपत होती है। USC तकनीक साधारण सब-क्रिटिकल इकाइयों की तुलना में कम कोयला जलाकर प्रति यूनिट ज्यादा दक्षता देती है, इसलिए उत्सर्जन तीव्रता भी अपेक्षाकृत कम रहती है।
कंपनी के सीईओ एस.बी. ख्यालिया ने कहा है कि पीरपैंती का अल्ट्रा सुपर-क्रिटिकल प्लांट संचालन दक्षता और स्थिरता के नए मानक स्थापित करेगा और बिहार को सस्ती व निर्बाध बिजली देगा। यह बयान उसी दिशा में संकेत देता है जिसमें राज्य सरकार औद्योगिक विकास और विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करना चाहती है।
Adani समूह की यह थर्मल परियोजना ऐसे समय आ रही है जब केंद्र ने 2035 तक 100 गीगावॉट अतिरिक्त थर्मल क्षमता जोड़ने का लक्ष्य रखा है। देश की मांग तेज़ी से बढ़ रही है—गर्मियों में पीक डिमांड रिकॉर्ड बन रहे हैं—और बेसलोड क्षमता के बिना नवीकरणीयों को 24×7 सपोर्ट देना मुश्किल है।
बिहार की पीक डिमांड हाल के वर्षों में तेज़ी से बढ़ी है। गाँव-गाँव बिजली कनेक्शन मिलने के बाद घरेलू खपत ऊपर गई है और उद्योगों की मांग भी स्थिर नहीं, बल्कि चढ़ती हुई दिखती है। ऐसे में 2,274 मेगावॉट की नेट सप्लाई राज्य के पावर मिक्स में बड़ा सहारा बनेगी। इससे डिस्कॉम्स को शॉर्ट-टर्म बाजार से महंगी खरीद कम करनी पड़ेगी और आपूर्ति शेड्यूल अधिक पूर्वानुमेय होगा।
नए प्लांट से जुड़े निर्माण-चरण में 10,000–12,000 प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोज़गार और संचालन के दौरान करीब 3,000 स्थायी पद सृजित होने का अनुमान है। इतनी बड़ी परियोजना के आसपास ठेकेदारी, लॉजिस्टिक्स, सिविल वर्क, मैकेनिकल-इलेक्ट्रिकल इंस्टॉलेशन, सुरक्षा, खान-पान, हाउसकीपिंग, ट्रांसपोर्ट और मेंटेनेंस जैसी सेवाओं की स्थानीय मांग पैदा होती है। फ्लाई ऐश से ईंट, सीमेंट और सड़क निर्माण की यूनिट्स भी सक्रिय होती हैं, जिससे स्थानीय उद्यमों को काम मिलता है।
ट्रांसमिशन के मोर्चे पर, 2,400 मेगावॉट को ग्रिड में सुरक्षित रूप से जोड़ने के लिए 400 kV स्तर पर नई लाइनों और जीआईएस सबस्टेशनों की जरूरत होगी। राज्य और केंद्र की ट्रांसमिशन एजेंसियों को समय पर लाइनें तैयार करनी होंगी, ताकि पहले यूनिट के कमीशनिंग के साथ ही एवैकेशन बाधा न बने। भागलपुर-खगड़िया-अररिया जैसे लोड सेंटर्स तक हाई-कैपेसिटी कॉरिडोर की योजना इस संदर्भ में अहम होगी।
पर्यावरण अनुपालन अब किसी विकल्प की तरह नहीं बचा। थर्मल प्लांट्स के लिए फ्ल्यू गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) सिस्टम, लो-एनओएक्स बर्नर्स/एससीआर, इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर्स और सतत उत्सर्जन मॉनिटरिंग सिस्टम अनिवार्य हैं। USC तकनीक के चलते प्रति यूनिट कोयला कम जलेगा, पर SO2, NOx और पार्टिक्युलेट नियंत्रकों की गुणवत्ता और रखरखाव से ही वास्तविक कमी दिखेगी। गंगा से जल लेने की स्थिति में जल-उपयोग, कूलिंग टावर और ज़ीरो-लिक्विड-डिस्चार्ज जैसी शर्तें पर्यावरण मंजूरी का हिस्सा बनती हैं। सार्वजनिक सुनवाई के दौरान प्रभावित गांवों के सुझाव और आपत्तियाँ रिकॉर्ड पर आएंगी, और अंतिम पर्यावरण स्वीकृति इन्हीं शर्तों के साथ दी जाती है।
भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास- पुनर्स्थापन (R&R) भी परियोजना की गति तय करते हैं। 2,400 मेगावॉट के ग्रीनफील्ड प्लांट के लिए आमतौर पर 1,500–2,000 एकड़ के आसपास भूमि की जरूरत पड़ती है, जिसमें मुख्य प्लांट, ऐश डाइक, जल संरचनाएँ और हरित पट्टी शामिल होती हैं। 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के अनुसार पारदर्शी मुआवजा, कौशल प्रशिक्षण और सामाजिक प्रभाव आकलन अनिवार्य हैं। समय पर और सहमति-आधारित समाधान से प्रोजेक्ट में देरी से बचा जा सकता है।
कोयले की सप्लाई SHAKTI पॉलिसी के तहत लिंकेंज से आएगी, यानी कोल इंडिया और इसकी सहायक कंपनियों से आवंटन। पूर्वी भारत में कोयला खदानों की निकटता (झारखंड-पश्चिम बंगाल) लॉजिस्टिक लागत कम रखने में मदद करेगी। फिर भी रेल रेक उपलब्धता, साइडिंग का निर्माण और मॉनसून के दौरान हैंडलिंग—ये सब जोखिम हैं जिन्हें प्लांट की योजना में पहले से बांधा जाएगा।
टैरिफ पर अगर सीधी नज़र डालें तो ₹6.075/kWh आज की सोलर या विंड दरों से ऊँचा लगता है। फर्क यह है कि थर्मल प्लांट 24×7 बेसलोड दे सकता है, जबकि रिन्यूएबल्स को स्टोरेज या बैकअप चाहिए—जिसका जोड़ लगाने पर प्रभावी लागत बढ़ जाती है। DBFOO में आमतौर पर फिक्स्ड चार्ज (पूंजी व O&M की रिकवरी) और वेरिएबल चार्ज (कोयला लागत) अलग-अलग पास होते हैं। SHAKTI लिंकेंज से वेरिएबल चार्ज की अनिश्चितता कुछ घटती है, जिससे राज्य के उपभोक्ताओं के लिए दरें ज्यादा स्थिर रह सकती हैं।
वित्तपोषण की बात करें तो इस पैमाने की परियोजनाएँ सामान्यतः 70:30 के आसपास ऋण-इक्विटी संरचना में बंद होती हैं। पावर फाइनेंस/इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस संस्थान और बड़े बैंकों की भागीदारी रहती है। वित्तीय क्लोज़र समय पर हो, EPC कॉन्ट्रैक्ट मजबूत रहे और सप्लाई-चेन (टर्बाइन-बॉयलर-जनरेटर, FGD, कंट्रोल सिस्टम) की डिलीवरी तय समय पर मिले—तो 48/60 महीनों के लक्ष्य यथार्थवादी बनते हैं।
उद्योग और उपभोक्ताओं के लिए इसका मतलब क्या है? उद्योगों को शेड्यूल्ड, क्वालिटी पावर मिले तो कैप्टिव डीज़ल पर निर्भरता घटती है और उत्पादन लागत नीचे आती है। घरेलू उपभोक्ताओं के लिए लंबी कटौतियाँ और वोल्टेज उतार-चढ़ाव कम हो सकते हैं। वितरण कंपनियों के नकदी प्रवाह को बेहतर बनाने के लिए पेमेंट सिक्योरिटी मैकेनिज़्म—जैसे लेटर ऑफ क्रेडिट, एस्क्रो और लेट पेमेंट सरचार्ज नियम—PSA का जरूरी हिस्सा होंगे, ताकि जेनरेटिंग कंपनी का कलेक्शन चक्र सुचारु रहे और आपूर्ति बिना रुकावट बनी रहे।
Adani Power का मौजूदा थर्मल पोर्टफोलियो 18,110 मेगावॉट तक फैला है और इसके प्लांट गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड और तमिलनाडु जैसे राज्यों में चल रहे हैं। कंपनी गुजरात में 40 मेगावॉट का सोलर प्लांट भी चलाती है। बड़े मल्टी-साइट अनुभव के चलते EPC, ईंधन लॉजिस्टिक्स और ग्रिड कोऑर्डिनेशन जैसे मुद्दों पर इसकी सीख बिहार परियोजना में सीधे उपयोग होगी।
समय-रेखा पर वापस आएँ तो, अगस्त 2025 के आसपास LoA जारी होने के बाद, यदि पर्यावरण और अन्य वैधानिक मंजूरियाँ समय पर मिलती हैं, तो पहली यूनिट को 2029 के आसपास और पूरी परियोजना को 2030 के आसपास चालू करने का लक्ष्य साधा जा सकता है। इस दौरान ट्रांसमिशन ढांचा, कोयला साइडिंग, जल संरचना, टाउनशिप, और ओवरबर्डन/ऐश हैंडलिंग सिस्टम—सब साथ-साथ बनेंगे। किसी भी मोर्चे पर देरी पूरी क्रिटिकल पाथ को प्रभावित कर सकती है, इसलिए ऑन-ग्राउंड प्रोजेक्ट मैनेजमेंट निर्णायक रहेगा।
पूर्वी बिहार के लिए यह निवेश सिर्फ बिजली परियोजना नहीं, बल्कि एक इन्फ्रास्ट्रक्चर क्लस्टर की शुरुआत भी है। नए सड़क संपर्क, पुल, वेयरहाउसिंग, स्वास्थ्य सुविधाएँ और औद्योगिक प्लॉटिंग जैसे सह-निवेश आम तौर पर ऐसे मेगा प्रोजेक्ट्स के साथ आते हैं। भागलपुर-बांका-मुंगेर बेल्ट में टेक्सटाइल, कृषि-प्रसंस्करण और माइक्रो मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों को भरोसेमंद आपूर्ति का लाभ मिलेगा।
फिर भी, ठोस निगरानी जरूरी है—उत्सर्जन मानकों का पालन, राख का 100% उपयोग, जल प्रबंधन, और स्थानीय समुदायों के साथ सतत संवाद। पारदर्शी रिपोर्टिंग और रियल-टाइम मॉनिटरिंग से परियोजना का सामाजिक लाइसेंस मज़बूत रहता है। अगर ये सब पटरी पर रहा, तो पीरपैंती प्लांट बिहार की बिजली सुरक्षा में बड़ा स्तंभ बन सकता है और राज्य के औद्योगिकीकरण की रफ्तार बढ़ा सकता है।