सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस विधायक के बाबू के खिलाफ सीपीआई(एम) नेता एम स्वराज द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया है। यह याचिका 2021 के केरल विधानसभा चुनावों के परिणाम को चुनौती देती है, जिसमें त्रिप्पुनिथुरा सीट से बाबू विजयी हुए थे। स्वराज, जिन्होंने इस चुनाव में बाबू से हार का सामना किया था, का आरोप है कि बाबू ने इस जीत को प्राप्त करने के लिए भ्रष्ट और अवैध तरीकों का इस्तेमाल किया।
एम स्वराज का आरोप है कि के बाबू ने चुनाव प्रचार के दौरान धर्म के आधार पर हिंदू मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि बाबू ने भगवान अयप्पा की तस्वीर के साथ वोटर स्लिप्स बांटी, जो कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत प्रतिबंधित है। स्वराज के अनुसार, बाबू का यह कदम चुनाव के परिणाम पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता था और इसी के आधार पर वह पुनर्मतगणना या चुनावों के पुनःआयोजन की मांग कर रहे हैं।
याचिका दायर करने के बाद, केरल उच्च न्यायालय ने बाबू की प्रारंभिक आपत्तियों को खारिज कर दिया था और मामले की सुनवाई की अनुमति दी थी। हाई कोर्ट का यह कदम स्वराज के लिए एक महत्वपूर्ण समर्थन साबित हुआ। अदालत ने माना कि शिकायत में उठाए गए सवाल प्रथम दृष्टया विचारणीय हैं और इनकी विस्तृत जांच जरूरी है।
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में अपना कदम बढ़ाया है और कांग्रेस विधायक के बाबू को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस बाबू से जवाब मांगने और स्थिति को स्पष्ट करने के लिए दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम इस कानूनी लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
यह मामला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है। यदि सुप्रीम कोर्ट स्वराज के पक्ष में फैसला सुनाती है, तो यह के बाबू की साख और उनकी विधायक सीट पर गंभीर असर डाल सकता है। इससे कांग्रेस पार्टी को भी एक बड़ा झटका लग सकता है। वहीं, अगर बाबू इस मामले में सफल होते हैं, तो यह कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण जीत होगी और पार्टी की साख में वृद्धि करेगी।
कुल मिलाकर, यह मामला अदालत में सुनाए जाने वाले फैसले तक राजनीति और कानून के क्षेत्र में चर्चाओं के केंद्र में रहेगा। सुप्रीम कोर्ट का नोटिस जारी करना एक बड़ी प्रगति है जो इस मामले को स्पष्ट और निष्पक्ष ढंग से सुलझाने में मदद करेगा।
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