राकेश किशोर, 71 वर्षीय सीनियर एडवोकेट, ने सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के दौरान मुख्य संविधान न्यायाधीश बी.आर. गैवे (बी.आर. गैवे) पर जूता फेंकने की कोशिश की। यह हमला कोर्ट की बेंच के उल्लेख चरण में हुआ, जहाँ गैवे साहब न्यायिक औपचारिकता बनाए रखे हुए थे। जूता लक्ष्य से चूक गया, लेकिन इस घटना ने भारत के न्यायिक इतिहास में एक बड़ी लहर खड़ी कर दी।
किशोर साहब डीली के मायूर विहार में स्थित एक औपचारिक निवासी हैं और 2009 से बार काउंसिल ऑफ दिल्ली के अधीन पंजीकृत वकील हैं। उनका श्रेय कई बार डेल्ही के शहदरा बार असोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन में भी मिलता है। हाल के महीनों में उनका ध्यान मुख्य न्यायाधीश गैवे के एक बयान पर गया, जो खजुराहो में एक क्षतिग्रस्त विष्णु प्रतिमा की बहाली से जुड़े मामले में दिया गया था। गैवे ने "जाओ, मूर्ति से ही पूछो" कहते हुए आध्यात्मिक पक्ष को सवालों में उलझा दिया, जिससे हिंदू सनातन धर्म के कुछ अनुयायी नाराज़ हो गए।
इस बयान के बाद, कई धार्मिक संगठनों ने गैवे के खिलाफ आवाज़ उठाई, और सार्वजनिक चर्चा तीव्र हो गई। राकेश किशोर ने इस बयान को "सनातन धर्म का अपमान" कहा और इसे सहन नहीं किया। पुलिस ने बताया कि घटना से पहले किशोर ने एक कागज पर "सनातन धर्म का अपमान, नहीं सहेंगे हिंदुस्तान" लिख कर रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच में केसों के उल्लेख के दौरान, किशोर साहब मंच के पास आए, अपना जूता उतारा और उसे गैवे के सामने फेंकने की कोशिश की। सुरक्षा गार्डों ने तुरंत उन्हें रोक लिया और कोर्ट परिसर से बाहर ले गए। इस दौरान किशोर ने "भारत सनातन धर्म के अपमान को सहन नहीं करेगा" और "सनातन का अपमान नहीं सहेंगे" जैसे नारों के साथ चिल्लाया। गैवे ने शांत रहकर कहा, "ऐसे चीज़ों का मेरे ऊपर कोई असर नहीं पड़ता," और कार्यवाही जारी रखी।
कैद के बाद, पुलिस ने तीन घंटे तक किशोर से पूछताछ की, लेकिन कोई औपचारिक FIR दर्ज नहीं हुई क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की ओर से कोई आरोप नहीं लगाया गया। उनकी जूती और लिखित नोट वापस कर दिया गया।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने घटना के दो घंटे बाद ही राकेश किशोर पर एक अंतरिम निलंबन आदेश जारी किया। काउंसिल ने कहा, "ऐसी हरकतें न्यायालय की गरिमा को क्षति पहुंचाती हैं और इन्हें असह्य माना जाता है।" निलंबन प्रक्रिया अभी चल रही है और आगे की जांच के बाद स्थायी निर्णय लिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट बोर्ड ने भी सुरक्षा के प्रोटोकॉल पर पुनर्विचार करने का संकेत दिया। कोर्ट सचिवालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "हम सुरक्षित माहौल बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे, लेकिन साथ ही न्यायाधीशों को भी इस तरह की व्यक्तिगत हमलों से सुरक्षित रखना है।"
धार्मिक संगठनों ने फिर भी गैवे के बयान को "निंदक" कहा और कहा कि न्यायाधीश को अपने शब्दों के प्रभाव को समझना चाहिए। कई कानूनी विद्वानों ने टिप्पणी की, "देखें, भारतीय लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, परन्तु वह कभी भी अदालत के स्वायत्तता को चुनौती नहीं देनी चाहिए।"
इस घटना ने सुप्रीम कोर्ट में सुरक्षा उपायों की प्रभावशीलता पर सवाल उठाए। पिछले दशक में नेंत्री सुरक्षा में कई सुधार हुए थे, लेकिन इस तरह की व्यक्तिगत हमला अभी भी संभव हो पाया। विशेषज्ञों का मानना है कि कोर्ट के मुख्य प्रवेश द्वार पर एंटी-फायरस स्क्रीन और कड़े पहचान प्रोटोकॉल की जरूरत है।
एक न्यायशास्त्र विशेषज्ञ ने कहा, "जैसे ही न्यायिक अधिकारियों पर हमला होता है, जनता का न्याय प्रणाली में विश्वास प्रभावित हो सकता है। इसलिए, ऐसी घटनाओं को रोकना न केवल सुरक्षा की बात है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा भी है।"
अगले कुछ हफ्तों में बार काउंसिल ऑफ इंडिया से निलंबन की अंतिम रिपोर्ट आएगी। यदि स्थायी निलंबन दिया गया, तो राकेश किशोर को वकालत की अनुमति से हटा दिया जाएगा। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेष समिति बनाकर कोर्ट सुरक्षा में तकनीकी उन्नति और कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर काम करने का इरादा जताया है।
धार्मिक और सामाजिक समूहों को भी इस बारे में विचार करना होगा कि सार्वजनिक बयानों की सीमा कहाँ है, तभी भविष्य में इस तरह के तनाव कम हो सकेंगे।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने अभी तक स्थायी निर्णय नहीं दिया है। अंतरिम निलंबन के बाद एक विस्तृत जांच होगी, और परिणामस्वरूप यदि कोर्ट के नियमों के विरुद्ध सिद्ध हुआ तो उन्हें स्थायी रूप से वकालत से हटाया जा सकता है।
कोर्ट ने एक विशेष समिति बनाकर एंट्री पॉइंट पर अतिरिक्त सुरक्षा स्क्रीन, बायोमैट्रिक वैरिफिकेशन और कोर्ट हॉल के भीतर निगरानी कैमरों की संख्या बढ़ाने का प्रस्ताव किया है। यह कदम आगामी महीनों में लागू होगा।
गैवे ने खजुराहो मंदिर के विष्णु प्रतिमा पुनर्स्थापना के मुद्दे पर तर्क दिया था कि न्यायिक प्रक्रिया को धार्मिक भावनाओं से अलग रखकर तथ्यों और कानून पर केंद्रित होना चाहिए। उनका "जाओ, मूर्ति से पूछो" का बयान आध्यात्मिक दृष्टिकोण को प्रश्न में लाने की कोशिश थी, न कि किसी विशेष धर्म को अपमानित करने की।
अभी तक सुप्रीम कोर्ट के अलावा अन्य हाई कोर्टों में आधिकारिक परिवर्तन नहीं हुआ है, परन्तु कई सुरक्षा विशेषज्ञों ने इस घटना को चेतावनी मानते हुए अपने-अपने अदालतों में सुरक्षा पर पुनः विचार करने की सलाह दी है।
कई धार्मिक संगठनों ने गैवे के बयान को "निंदक" कहा और कहा कि किसी भी धार्मिक भावना का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने न्यायालय में इस तरह की टिप्पणियों के लिए अधिक संवेदनशीलता की मांग की है।
जज बीआर गैवे को जूता फेंकने की कोशिश करने वाले राकेश किशोर की हरकत ने न्यायालय की गरिमा पर ध्वस्त कर दिया! यह न सिर्फ कानून की अवहेलना है बल्कि देश की शान को भी धूमिल कर रहा है। ऐसे अर्जेंटीना‑समान नाटक को अब बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।