मनमोहन सिंह का नाम तब तक सुनते हैं जब भारत की आर्थिक और सामाजिक दिशा‑परिवर्तन की बात आती है। 26 दिसम्बर 2024 को उनका देहांत हुआ, पर उनका कार्यकाल, 1991 के आर्थिक सुधारों से लेकर 2014 तक के दो प्रधानमंत्रित्व तक, आज भी भारत की नीतियों में गूँज रहा है। इस लेख में हम उनके मुख्य कदमों, उपलब्धियों और चुनौतियों को विस्तार से देखते हैं।
1991 में पी. वी. नरसिम्हा राव के सरकार में वित्त मंत्री बने मनमोहन सिंह ने एक ऐसा बजट पेश किया जिसने 'लाइसेंस राज' को तोड़ दिया। उस बजट में आयात शुल्क घटाए गए, विदेशी निवेश को पूरा स्वागत मिला, और सरकारी उद्यमों को स्वतंत्रता दी गई। परिणामस्वरूप, भारत की जीडीपी औसत वार्षिक वृद्धि 3 % से छलांग लगाकर 7‑8 % तक पहुंच गई। इस अवधि में विदेशी मुद्रा भंडार में भारी कमी थी, लेकिन नई नीति ने पूँजी प्रवाह को बढ़ावा दिया और कई नए उद्योगों का उभार किया।
उदाहरण के तौर पर, सूचना प्रौद्योगिकी सेवा (आईटी) सेक्टर ने 1990‑95 में 30 % से अधिक की वार्षिक वृद्धि देखी। यह वृद्धि आज भारत को विश्व की प्रमुख सॉफ़्टवेयर निर्यातकों में से एक बनाती है। इसी के साथ, टेलीकॉम में उदारीकरण ने मोबाइल फोन की कीमत घटाकर आम आदमी तक पहुंचाया, जिससे 2000 के दशक के अंत में भारत में 600 मिलियन से अधिक मोबाइल सब्सक्राइबर हो गए।
2004‑2014 में प्रधानमंत्री रहकर मनमोहन सिंह ने कई प्रमुख सामाजिक योजनाएँ लागू कीं। 2005 में शुरू हुआ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईगा) ग्रामीण परिवारों को 100 दिन का रोजगार दिलाता है, जिससे गरीबी में गिरावट आती है। आज तक इस योजना के तहत 10 करोड़ से अधिक कार्यकर्ता ने भाग लिया है, और ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में गिरावट आई रस्ते, जल तालाब, स्कूल आदि बने हैं।
उसी साल पारदर्शिता के लिए सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम पास हुआ, जिसने नागरिकों को सरकारी दस्तावेज़ों तक पहुंच का अधिकार दिया। यह कदम भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में काफी असरदार साबित हुआ, कई उच्च‑स्तरीय मामलों में यह प्रमुख साक्ष्य बन गया।
शिक्षा के क्षेत्र में 2009 में बाल अधिकार अधिनियम (आरसीईए) पारित हुआ, जिसने 6‑14 वर्ष के बच्चों के लिये मुफ्त अनिवार्य शिक्षा को संविधानिक अधिकार बनाया। इस कानून के प्रभाव से प्राथमिक स्कूलों में नामांकन दर 85 % से 96 % तक बढ़ी, विशेषकर ग्रामीण और पिछड़े वर्गों में।
जमीनी सुधार में 2013 में 'फ़ेयर कम्पन्सेशन एंड ट्रांसपरेंसी इन लैंड ऐक्विज़िशन एक्ट' पारित हुआ, जिससे किसानों को उचित मुआवज़ा और पुनर्वास की गारंटी मिली। इस अधिनियम ने कई बड़े बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया को अधिक न्यायसंगत बनाया।
इन सामाजिक पहलों के अलावा विधवाओं, गर्भवती महिलाओं और बिना जमीन वाले वर्गों को नकद सहायता प्रदान करने वाले योजनाओं को भी सरकार ने लागू किया, जिससे सामाजिक सुरक्षा की जड़ मजबूत हुई।
विदेश नीति के क्षेत्र में 2005 का भारत‑अमेरिका सिविल एटॉमिक समझौता एक मील का पत्थर रहा। इस समझौते ने भारत को अंतरराष्ट्रीय परमाणु मंच पर लायुक्त किया और दोनों देशों के बीच व्यापार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग को नई ऊँचाइयों पर पहुंचाया। साथ ही 2014 में जापान द्वारा उन्हें 'ग्रैंड कॉर्डन ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द पॉलोविनिया फ्लावर्स' से सम्मानित किया गया, जो भारत‑जापान रिश्ते की गहरी कड़ियों को दर्शाता है।
राजनीतिक इतिहास में मनमोहन सिंह कुछ अनोखे रिकॉर्ड धारण करते हैं: वे पहले और एकमात्र सिख प्रधानमंत्री हैं, और वे वह एकमात्र प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने सीधे जनमत संग्रह में जीत नहीं पाई, बल्कि राज्यसभा के माध्यम से पद संभाला। 2009 में उन्होंने 1962 के बाद दोबारा पूर्ण कार्यकाल के बाद पुनः चुने जाने का गौरव प्राप्त किया।
उनके दूसरे कार्यकाल में स्पेक्ट्रम अलोकेशन, कोयला और कोमनवेल्थ गेम्स जैसी कई विवादित मामलों की जांच हुई, पर इन कठिनाइयों ने उनके समग्र योगदान को कम नहीं किया। 2014 में कांग्रेस की हार के बाद भी उन्होंने राज्यसभा में कार्य करना जारी रखा, कुल मिलाकर 33 साल की संसद सेवा पूरी की। उनका नेतृत्व शालीनता, शांत स्वभाव और बौद्धिक कठोरता से भरपूर था, जिससे भारतीय राजनीति में एक नया मानक स्थापित हुआ।
मनमोहन सिंह की नीतियों ने आज भी देश को दिशा दी है उनके आर्थिक कदमों को सराहा जाता है
वित्तीय उदारीकरण के दायरे को पुनर्परिभाषित करने वाले सिंगोलॉजिकल फ्रेमवर्क के अंतर्गत, मैनमोहन सिंह ने नियामक प्रिस्क्रिप्शन को वैरियेबल मार्केट डायनामिक्स के साथ इंटीग्रेट किया, जिससे बायस्ड मैक्रोइकॉनॉमिक असिम्प्टोटिक शिफ्ट उत्पन्न हुई।
भाई लोग, इस पोस्ट में बताई गयी बातें बिलकुल सही है, मैं भी कहूँगा कि जीडीपी की ग्रोथ का क्रेडिट उनके बजट को दिया जा सकता है।
मनमोहन सिंह के आर्थिक उद्यमों ने भारत को सिर्फ़ ग्रोथ नहीं दी, बल्कि सामाजिक संरचना में भी परिवर्तन लाया। हर एक नीति ने असमानता के खाके को पुनः लिखने का प्रयास किया। ग्रामीण रोजगार गारंटी से लाखों लोगों को स्थायी आय मिली, और यह निश्चित रूप से गरीबी में गिरावट लाया। फिर भी, यह पहल कुछ क्षेत्रों में कार्यान्वयन की चुनौतियों से जूझी, जिससे लाभ असमान रूप से वितरित हुआ। सूचना प्रौद्योगिकी के उदय ने शहरी युवा को विश्व मंच पर प्रतिस्पर्धी बनाया, पर उससे ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल डिवाइड भी बढ़ी। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के बढ़ते प्रवाह ने उद्योगों को नई तकनीकों से सुसज्जित किया, पर इससे स्थानीय उद्यमों पर दबाव भी बढ़ा। मैक्रोइकॉनॉमिक स्थिरता की बात करें तो, आर्थिक सुधारों ने वित्तीय जोखिम को कम किया, पर साथ ही ऋण‑निर्मित बबल की संभावना को भी उजागर किया। सामाजिक कल्याण योजनाओं जैसे एमजीएनआरईगा ने बुनियादी ढाँचे को सुदृढ़ किया, पर उनके निरंतर निधि प्रवाह को बनाए रखना आज भी एक चुनौती है। सूचना का अधिकार ने पारदर्शिता को बढ़ावा दिया, पर कई मामलों में अनावश्यक ब्यूरोक्रेसी ने इसकी प्रभावशीलता को सीमित किया। शिक्षा सुधारों ने साक्षरता दर को ऊँचा किया, पर असमानता के कारण शैक्षिक गुणवत्ता में अंतर बना रहा। विदेश नीति में भारत‑अमेरिका समझौते ने रणनीतिक साझेदारी को मजबूत किया, पर घरेलू स्तर पर इसके प्रभाव को लेकर विविध मत रहे। इन सभी पहलुओं को समेटे तो, मनमोहन सिंह का नेतृत्व एक जटिल संतुलन act था, जहाँ आर्थिक उदारीकरण और सामाजिक न्याय दोनों को साथ लेकर चलना आवश्यक था। इस संतुलन को समझना और भविष्य की नीतियों में इसे लागू करना ही हमारे लिए एक बड़ा कार्य है।
मनमोहन सिंह के चरणों में लागू किए गये आर्थिक सुधारों का विधायी विश्लेषण स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि संरचनात्मक लिबरलाइज़ेशन ने भारत की वित्तीय स्थिरता को सुदृढ़ किया।
भारत के वैश्विक मंच पर मौजुदगी को सुदृढ़ करने हेतु, मैनमोहन सिंह ने विज्ञान‑प्रौद्योगिकी सहयोग को प्राथमिकता दी, जिससे दोनो देशों के बीच प्रॉक्सिमिटी बढ़ी।
इन रिफ़ॉर्म्स ने इकोनोमिकल पर्स्पेक्टिव को इम्प्रूव किया, बट थिईर इज़ अल्सो क्रिटिसिस अवर लैक फोकस ऑन रुरल एरियाज़।
सच बोलूँ तो, इस टाइमलाइन में मैनमोहन की सभी पॉलिसीज़ नहीं देखी गयीं, कई बार तो वो भी फॉर्मेलिटी में खो गईं।
मनमोहन सिंह, जिन्होंने 1991 के आर्थिक सुधार को आरंभ किया; उन्होंने विदेशी निवेश को सवागत किया, लाइसेंस राज को हटाया, और बैंकों के निजीकरण में पहल की, यह सब रणनीतिक उद्यम था, जो बाद में आईटी और टेलीकॉम सेक्टर के विस्फोट को प्रेरित किया।
वाह, कितनी शानदार योजना है, जैसे 100‑दिन रोजगार, पर वास्तविकता में कई गांवों में कार्य नहीं मिला; लेकिन फिर भी, यह पहल सराहनीय है, ना?
कहते हैं कि सब कुछ अच्छा था, पर क्या यह सच है? शायद कुछ और बेस्सी चीजें छुपी हो।
साक्ष्य के आधार पर कहा जाए तो, मनमोहन सिंह के आर्थिक दृष्टिकोण को एक ‘इंटरडिसिप्लिनरी कॉन्सेप्ट बाइंडिंग’ की तरह देखा जा सकता है, जहाँ नीति‑निर्माण में सामाजिक कल्याण के तत्वों को मैक्रो‑इकोनॉमिक स्थिरता के साथ इंटीग्रेट किया गया। यह दृष्टिकोण न केवल विकासात्मक प्रोजेक्ट्स को सशक्त बनाता है, बल्कि दीर्घकालिक सामाजिक समावेशीकरण को भी प्रेरित करता है।