जब मनमोहन सिंह को परिभाषित किया जाता है, तो वह केवल एक राजनीतिक नेता नहीं, बल्कि आर्थिक बदलाव के निर्माता के रूप में उभरते हैं। एक विश्वसनीय वित्तीय विशेषज्ञ, दोबार भारत के प्रधानमंत्री, और 1991 में शुरुआती आर्थिक उदारीकरण के प्रमुख वास्तुकार के रूप में उनका सफ़र, भारत की विकास यात्रा में एक मौलिक मोड़ बन गया। उनका नाम डॉ. मनमोहन सिंह भी कई संदर्भों में मिलता है, जहाँ वे आर्थिक नीति, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, और सामाजिक प्रगति के बीच संतुलन स्थापित करने की कोशिश करते रहे।
इन प्रमुख बदलावों की समझ के लिए कुछ सहायक संस्थाओं को देखना ज़रूरी है। भारत दुनीया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में से एक, जिसकी आर्थिक और सामाजिक नीतियां वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित करती हैं के विकास के साथ, आर्थिक नीति वित्तीय नियम, कर संरचना, और निवेश माहौल को आकार देती है, जो राष्ट्रीय विकास को दिशा देती है का संबंध गहरा है। इसी संदर्भ में, वित्तीय सुधार बजट का संतुलन, सार्वजनिक खर्च में पारदर्शिता, और बैंकिंग प्रणाली की सुदृढ़ीकरण पर केंद्रित कदम ने 1990 के दशक के बाद से निरंतर गति पाई। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विदेशी निवेश, निर्यात‑आधारित वृद्धि, और द्विपक्षीय समझौतों को प्रोत्साहित करने वाली प्रक्रियाएं ने भारत को वैश्विक बाजार में एक विश्वसनीय खिलाड़ी बना दिया। इन सभी घटकों का आपसी संबंध इस प्रकार दिखता है: "मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण लागू किया", "आर्थिक सुधार भारत की विकास गति को तेज़ किया", "वित्तीय नीति भारत की स्थिरता को समर्थन देती है" – ये सभी त्रिपक्षीय संबंध वस्तु‑क्रिया‑वस्तु (Subject‑Predicate‑Object) के रूप में स्थापित होते हैं।
अब आप मनमोहन सिंह के बारे में बुनियादी परिभाषा और उनके कार्यक्षेत्र की विस्तृत तस्वीर देख चुके हैं। आगे आने वाले लेखों में उनकी नीति‑निर्माण प्रक्रिया, प्रमुख आर्थिक कदम, और भारत के विविध क्षेत्रों पर उनके असर के विशिष्ट उदाहरण मिलेंगे। चाहे आप इतिहासकार हों, नीति‑निर्धारक, या साधारण पाठक, इस संग्रह में आपको उनके योगदान की गहरी समझ और व्यावहारिक समझ मिलेगी। तो चलिए, इस पेज पर उपलब्ध लेखों के माध्यम से मनमोहन सिंह के प्रभाव का और अधिक अन्वेषण करें।
25 दिसम्बर 2024 को निधन हुआ भारत के 14वें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आर्थिक, सामाजिक और विदेश नीति के व्यापक योगदान को इस विस्तृत लेख में समझा गया है। 1991 के आर्थिक उदारीकरण से लेकर MGNREGA, आरटीआई, शिक्षा और एटॉमिक डील तक उनकी विरासत का जिक्र है।