भिलवाड़ा शहरी सुधार ट्रस्ट (यूआईटी) ने भिलवाड़ा आवास योजना के तहत 3,081 residential प्लॉट्स की लॉटरी आयोजित की। परिणाम 22 सितंबर 2025 को घोषित किए गए, जो नवरात्रि के शुभ मौसम में हजारों घर‑सपनों को साकार करने का वादा कर रहा था। कुल 89,765 आवेदन प्राप्त हुए, जो लगभग नौ अलग‑अलग आवास योजनाओं में बँटे थे। इनमें पैंचवटी योजना सबसे बड़ी थी, जिसमें 956 प्लॉट्स उपलब्ध कराए गए और यह सबसे अधिक आकर्षित करने वाली योजना बन गई।
हर आवेदन फॉर्म की कीमत 2,000 रुपये रखी गई, जो अजमेर जैसे अन्य शहरों के 1,000 रुपये के शुल्क से अधिक थी। आवेदन की अंतिम तिथि 15 जुलाई 2025 तय की गई थी, जिससे इच्छुक आवेदकों को पर्याप्त समय मिला। इस अवधि में सभी वर्गों – EWS, LIG, MIG और HIG – के लिए अलग‑अलग कोटा निर्धारित किए गए। EWS और LIG में एक परिवार को एक इकाई माना गया, जबकि MIG और HIG में व्यक्तिगत आवेदक को अलग इकाई माना गया।
जाँच प्रक्रिया को तेज़ और पारदर्शी बनाने के लिए यूआईटी ने गहन स्क्रूटनी टीम बनाई। 20 अगस्त 2025 तक 61,000 आवेदनों की जाँच पूरी हो गई। इस कार्य का नेतृत्व supervising engineer रजु बडरिया, तहसीलदार, ज़मीन अधिग्रहण अधिकारी और executive engineer ने किया। हर अधिकारी को प्रति दिन 300 आवेदनों की जाँच का लक्ष्य था, जिससे बड़े पैमाने पर दस्तावेज़ी नज़रें जल्दी से प्रोसेस हो सकें। ट्रस्ट सचिव ललित गोयल ने इस जाँच को एक महीने के भीतर समाप्त करने का निर्देश दिया, ताकि सितंबर के पहले सप्ताह में लॉटरी ड्रॉ संभव हो सके।
लॉटरी का ऑनलाइन संचालन जयपुर डिवेलपमेंट अथॉरिटी (JDA) की IT टीम ने किया। सभी सत्यापित आवेदन departmental servers पर अपलोड किए गए, और किसी भी त्रुटि को फोन द्वारा सीधे आवेदकों से संपर्क कर सुधार लिया गया। लॉटरी के लिए Executive Engineer रविश श्रीवास्तव ने जिम्मेदारी संभाली और कहा कि आवंटन पूरी तरह से ऑनलाइन प्रक्रिया के माध्यम से ही होगा। इस डिजिटल विधि ने पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा दिया, जिससे जनता का भरोसा जीतने में मदद मिली।
लॉटरी के साथ ही एक बड़ा विवाद भी उभरा। कई किसान और अचल संपत्ति दलिलदारों ने यूआईटी पर शहर के मास्टर प्लान में बदलाव करने का आरोप लगाया। उन्होंने कलेक्टर की इमारत के बाहर बड़े झंडे खेलाए और कहा कि यूआईटी ने सेक्शन‑32 के तहत बहु‑उद्देश्यीय योजना में अनधिकृत परिवर्तन किए हैं। मुख्य बिंदु यह था कि पूर्व में प्रस्तावित बहु‑उद्देश्यीय योजना को पुनः स्थापित किया जाना चाहिए।
इन अभियानों के बीच, जिला कलेक्टर और यूआईटी चेयरमैन जसमीट सिंह संधू ने स्पष्ट कर दिया कि कोई भी अनधिकृत परिवर्तन नहीं किए गए हैं। उन्होंने कहा कि मौजूदा योजना आधिकारिक रूप से मान्य है और किसी भी प्रकार की फेरबदल करने की कोई कानूनी शक्ति यूआईटी के पास नहीं है। उनकी टिप्पणी ने प्रोसेस को कानूनी ढाँचे में रखकर विरोध प्रदर्शनों को थोड़ा कम कर दिया।
उसी समय, यूआईटी ने कहा कि इस लॉटरी में सभी वर्गों के लिए बराबर अवसर प्रदान किए गए हैं, जिससे सामाजिक न्याय के साथ आवास उपलब्धता भी सुनिश्चित हुई। विपक्षी समूहों ने भविष्य में ऐसे परियोजनाओं में जन भागीदारी बढ़ाने की मांग की, जबकि प्रशासन ने इस बात पर बल दिया कि आगे भी ऑनलाइन लॉटरी जैसी तकनीकी उपायों के साथ पारदर्शिता को प्राथमिकता दी जाएगी।
भिलवाड़ा के बढ़ते जनसंख्या को देखते हुए, इस तरह की बड़े पैमाने पर आवास योजना सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। इस लॉटरी के माध्यम से लाखों रुपये का निवेश, विस्तृत जाँच प्रक्रिया और डिजिटल वितरण प्रणाली ने यह साबित किया कि शहरी विकास में प्रशासनिक दक्षता को भरोसेमंद बनाया जा सकता है। भविष्य में भी इस मॉडल को दोहराने की संभावना बनी हुई है, जिससे अन्य शहरों को भी समान रूप से लाभ मिल सकेगा।
भिलवाड़ा यूआईटी ने इस लॉटरी के माध्यम से घर‑सपनों को साकार करने का अद्भुत प्रयास किया, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को नजरअंदाज़ किया गया है; सबसे पहले, आवेदन शुल्क 2,000 रुपये रखा गया, जो कई मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए भारी आर्थिक बोझ बन सकता है, और यह शुल्क अन्य शहरों की तुलना में दो गुना है, जैसे अजमेर जहां केवल 1,000 रुपये की मांग की गई थी; दूसरा, लॉटरी के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया को अपनाया गया, जिससे पारदर्शिता के दावे को बढ़ावा मिला, परंतु डिजिटल साक्षरता की कमी वाले ग्रामीण इलाकों के लोगों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है; तीसरा, जाँच प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए प्रति दिन 300 आवेदनों की सीमा तय की गई, जो श्रम शक्ति और गुणवत्ता दोनों पर असर डाल सकती है; चौथा, पैंचवटी योजना में 956 प्लॉट्स बंटे, यह दिखाता है कि विस्तृत वर्गीकरण के बावजूद भी उच्च वर्ग के लोग लाभकारी स्थिति में नहीं हैं; पाँचवाँ, किसान समूह द्वारा उठाए गए विरोध को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि जमीन अधिग्रहण के मामलों में सामाजिक संवाद की कमी है, जिससे भविष्य में अधिक अशांति की संभावना है; छटा, इस लॉटरी ने विभिन्न वर्गों के लिए अलग‑अलग कोटे निर्धारित किए, परंतु वास्तविक अनुपातिक वितरण की जांच आवश्यक है; सात, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर आवेदन त्रुटियों को टेलीफ़ोन द्वारा सुधारा गया, यह प्रणाली की दक्षता को दर्शाता है; आठ, लॉटरी ड्रॉ की तिथि नवरात्रि के शुभ मौसम में रखी गई, जो सामाजिक धारणाओं को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है; नौ, यूआईटी की स्क्रूटनी टीम ने 61,000 आवेदनों की जाँच 20 अगस्त तक पूरी कर ली, जो एक उल्लेखनीय प्रशासनिक उपलब्धि है; दस, ट्रस्ट सचिव ने इस प्रक्रिया को एक महीने के भीतर समाप्त करने का निर्देश दिया, जिससे समयबद्धता का पालन हुआ; ग्यारह, विभिन्न वर्गों के लिए आवेदकों की परिभाषा स्पष्ट की गई, परंतु वास्तविक सामाजिक प्रभाव की जाँच जरूरी है; बारह, कई अचल संपत्ति दलिलदारों ने सेक्शन‑32 के तहत अनधिकृत परिवर्तन का आरोप लगाया, जिससे कानूनी जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं; तेरह, जिला कलेक्टर ने इस बारे में स्पष्टता प्रदान की, परंतु सार्वजनिक भरोसे को पूरी तरह से पुनः स्थापित करने में समय लगेगा; चौदह, इस लॉटरी के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्था में निवेश किया गया, जो नौकरी अवसरों को बढ़ावा देता है; पंद्रह, भविष्य में इस मॉडल को दोहराने की संभावना है, लेकिन इसे सुधारने के लिए नागरिक भागीदारी की आवश्यकता है; और अंत में, यह लॉटरी शहरी विकास की दिशा को पुनः परिभाषित कर सकती है, यदि सभी हितधारकों को समान रूप से शामिल किया जाए।
ओह वाह, 2k फीस के साथ तो सपनों की लॉटरी बन गई, खाराब!
इंडिया की शहरी योजना को देख कर गर्व हो रहा है, हमें इसको विदेश में भी प्रमोट करना चाहिए, बाकी सब फेक है।
अरे भाई, इतना बड़ा प्लॉट वाटरिंग सिस्टम क्यों नहीं बनाया? ऐसे लॉटरी में तो झंझट ही झंझट है!
लॉटरी प्रक्रिया में डिजिटल पारदर्शिता का उपयोग सराहनीय है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट पहुंच को ध्यान में रखना आवश्यक है।
डिजिटल प्रक्रिया से शौकिया लोग भी आसानी से भाग ले सकते हैं!!! लेकिन फॉर्म में त्रुटि होने पर सहायता के लिए फोन कॉल भी बहुत जरूरी है!!!