रूस का सैन्य खतरा आज सिर्फ यूक्रेन का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। रूस का सैन्य खतरा, एक ऐसा राजनीतिक-सैन्य दबाव है जो यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था को हिला रहा है और वैश्विक ऊर्जा और खाद्य आपूर्ति को प्रभावित कर रहा है. इसे कभी-कभी रूसी सैन्य एजेंडा भी कहा जाता है, जो नाटो के विस्तार के खिलाफ अपनी सीमाओं को फिर से खींचने की कोशिश कर रहा है। यूक्रेन पर हमले के बाद से, रूस ने अपनी नाभिकीय क्षमता, ड्रोन युद्ध, और ईंधन नियंत्रण के जरिए दुनिया को चुनौती दी है। ये सिर्फ युद्ध नहीं, बल्कि एक नए युग की शुरुआत है, जहाँ शक्ति का निर्णय सैन्य बल से हो रहा है।
यूक्रेन युद्ध, रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा एक ऐसा संघर्ष है जिसने यूरोप में 80 साल की शांति की धारा को तोड़ दिया है. इसका असर भारत जैसे देशों पर भी पड़ रहा है, जो रूस से सस्ती तेल खरीद रहे हैं और नाटो के साथ जुड़ने की बजाय तटस्थ रहने की नीति अपना रहे हैं। रूसी सेना अब सिर्फ टैंक और तोपें नहीं, बल्कि साइबर हमले, जासूसी ड्रोन, और राजनीतिक भ्रम का भी इस्तेमाल कर रही है। नाटो के सदस्य देशों ने यूक्रेन को हथियार दिए हैं, लेकिन वे सीधे युद्ध में शामिल नहीं हो रहे। इसी बीच, भारत ने अपनी रक्षा नीति में बदलाव किया है — रूस से लगभग 60% हथियार आयात कर रहा है, लेकिन साथ ही अमेरिका और फ्रांस के साथ सैन्य सहयोग भी बढ़ाया है।
ये सब कुछ आपको इस पेज पर मिलेगा — रूस के सैन्य बल की वास्तविक क्षमता, उसके नए हथियारों के बारे में अपडेट, यूक्रेन के युद्ध के नए मोड़, और भारत की रणनीति कैसे बदल रही है। कुछ खबरें आपने पढ़ी होंगी, कुछ नहीं। कुछ आंकड़े आपको हैरान कर देंगे। यहाँ कोई भ्रम नहीं, कोई भाषण नहीं — सिर्फ तथ्य, जो आपको अपनी समझ बनाने में मदद करेंगे।
यूरोपीय संघ ने 450 मिलियन नागरिकों को युद्ध की तैयारी के लिए चेतावनी दी, जबकि नाटो महासचिव मार्क रुट्टे ने 2030 तक रूस के यूरोप पर हमले की चेतावनी दी।