नाटो, यानी उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन, एक सैन्य गठबंधन जो 1949 में यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कई देशों द्वारा स्थापित किया गया था, ताकि सामूहिक रूप से सुरक्षा को बनाए रखा जा सके। इसे अक्सर NATO भी कहा जाता है, और यह आज दुनिया का सबसे शक्तिशाली सैन्य गठबंधन है।
इसकी शुरुआत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुई, जब यूरोप में सोवियत संघ के प्रभाव के खिलाफ एक सुरक्षा ढांचा बनाने की जरूरत महसूस की गई। आज इसमें 31 देश शामिल हैं, जिनमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और पोलैंड जैसे देश शामिल हैं। इसका मुख्य उद्देश्य एक सदस्य देश पर हमला होने पर दूसरे सभी सदस्य उसकी सुरक्षा के लिए खड़े हो जाएं। यही वजह है कि नाटो को एक गैर-हमलावर बल के रूप में देखा जाता है, लेकिन इसकी ताकत उसके सैन्य बजट और संयुक्त अभ्यासों में छिपी है।
रूस के साथ तनाव बढ़ने के बाद, नाटो की भूमिका और भी बढ़ गई है। यूक्रेन के साथ रूस के संघर्ष में यह संगठन खुलकर यूक्रेन का समर्थन कर रहा है, भले ही यह सीधे युद्ध में शामिल न हो। इसके अलावा, नाटो अब एशिया में भी अपनी नीतियाँ बना रहा है। जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इसके साथ सहयोग कर रहे हैं। भारत के लिए यह बात खास तौर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि नाटो के निर्णय वैश्विक बाजार, ऊर्जा की कीमतें और रक्षा आपूर्ति पर सीधा असर डालते हैं।
जब आप देखते हैं कि न्यूजीलैंड की टीम एडन पार्क में खेल रही है, या जब जॉफ्रा आर्चर को एशेज़ के लिए बाहर रखा गया, तो आप नहीं सोचते कि इन सबके पीछे एक बड़ी राजनीतिक ताकत है। लेकिन वास्तव में, यह नाटो के निर्णयों और उसके वैश्विक प्रभाव का ही एक हिस्सा है। जब यूरोप में ऊर्जा की कीमतें बढ़ती हैं, तो भारत में डीजल और पेट्रोल की कीमतें भी लहराती हैं। जब नाटो रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाता है, तो भारतीय कंपनियाँ नए बाजार ढूंढती हैं।
इसलिए, नाटो सिर्फ एक सैन्य संगठन नहीं है। यह एक ऐसा नेटवर्क है जो आपके बैंक बैलेंस, गैस के बिल और यहाँ तक कि आपके देश के विदेश नीति को भी आकार देता है। इस पेज पर आपको ऐसे ही कई समाचार मिलेंगे जो दिखाते हैं कि दुनिया के किसी कोने में हो रही एक घटना कैसे आपके शहर की सड़कों तक पहुँच जाती है।
यूरोपीय संघ ने 450 मिलियन नागरिकों को युद्ध की तैयारी के लिए चेतावनी दी, जबकि नाटो महासचिव मार्क रुट्टे ने 2030 तक रूस के यूरोप पर हमले की चेतावनी दी।