फेतुल्लाह गुलेन का जन्म तुर्की के पश्चिमी प्रांत अनातोलिया के एक छोटे से गांव में हुआ था। अपने युवा अवस्था में, उन्होंने धार्मिक शिक्षा प्राप्त की और एक वक्ता के रूप में अपनी प्रसिद्धि स्थापित की। उनकी शिक्षा के प्रति रुचि ने उन्हें एक अद्वितीय स्वप्न देखने वाला बना दिया। गुरुकुलों और बोर्डिंग हाउसों के माध्यम से, उन्होंने छात्रों को शैक्षिक सहायता प्रदान करके तुर्की के शिक्षा प्रणाली में योगदान दिया।
1960 के दशक में इज़मिर में एक उपदेशक के रूप में, गुलेन ने छात्रों के लिए "लाइटहाउस" के रूप में जाने वाले आश्रमों का एक जाल बिछाया। यह प्रयोग शिक्षा में सुधार का उद्देश्य रखता था और इसके माध्यम से उन्होंने अपना नींव सुदृढ़ किया। 1986 में, उनके समर्थकों ने 'जमन' नामक प्रतिष्ठित समाचार पत्र की स्थापना की। 1993 में, 'सामन्योलेक' टेलीविजन चैनल का संचालन भी उनके अनुयायियों द्वारा किया गया। इस प्रकार, उनका प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ता रहा।
2000 के दशक की शुरुआत में, गुलेन और अर्दोआन की न्याय और विकास पार्टी (एके पार्टी) के बीच निकट सम्बंध स्थापित हुए। यह गठजोड़ प्रारंभ में तुर्की के सैन्य क्षेत्र और राजनीति में धर्मनिरपेक्षता वाहकों को चुनौती देने की मंशा से बना था। लेकिन कुछ वर्षों बाद, दोनों के बीच मतभेद बढ़ गए। 2013 में कथित भ्रष्टाचार मामलों में एर्दोआन के नजदीकी लोगों की जांच के चलते दोनों के बीच विवाद और बढ़ गया। एर्दोआन ने आरोप लगाया कि गुलेन एक 'समांतर राज्य' की स्थापना की कोशिश कर रहे हैं।
15 जुलाई 2016 को, तुर्की में एक सैन्य तख्तापलट प्रयास किया गया। रणनीतिक अग्रणी अधिकारियों ने एर्दोआन को सत्ता से बाहर करने का प्रयास किया। हालांकि यह कोशिश असफल रही, लेकिन सैकड़ों लोग मारे गए। एर्दोआन ने गुलेन पर इसका षड्यंत्रकारी होने का आरोप लगाया जबकि गुलेन ने जोर देकर इसे खारिज किया। तुर्की सरकार ने गुलेन के अनुयायियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करते हुए इसे फेतुल्लाह आतंकवादी संगठन (एफईटीओ) करार दिया।
गुलेन आंदोलन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैल गया। उनके समर्थकों ने 160 देशों में 1,000 से अधिक स्कूल स्थापित किए। उन्हें अच्छे शिक्षा प्रदाता के रूप में पहचाना गया। अमेरिका में गुलेन के अनुयायी उनके विचारों का प्रचार करते रहे, हालांकि तुर्की सरकार ने गुलेन से सम्बंधित संस्थानों को बंद करने का दबाव बनाया। अमेरिकी न्याय विभाग ने तख्तापलट से उनके संबंध के पर्याप्त सबूत न होने की बात कहते हुए गुलेन को प्रत्यर्पित करने से इनकार कर दिया।
गुलेन के निधन से तुर्की में राजनीतिक माहौल में फिर से गर्मी आ सकती है। तुर्की विदेश मंत्री हाकन फिदान ने दावा किया कि उनकी मृत्यु से सरकार की आतंक के खिलाफ लड़ाई नहीं रुकेगी। हालांकि, गुलेन की शिक्षाओं का प्रभाव उनके समालोचकों और अनुयायियों दोनों पर पड़ता रहेगा, और उनके विचार शिक्षा, संवाद, और शांति पूर्ण गतिविधियों के माध्यम से कायम रहेंगे।
फेतुल्लाह गुलेन की शिक्षा मॉडल को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि उनका प्रमुख उद्देश्य सामाजिक पुनर्निर्माण था। हालांकि, तुर्की की लोकतांत्रिक संस्था पर उनका प्रभाव अक्सर अनैतिक तरीकों से व्याख्यायित किया गया है। यह पहल न केवल वैचारिक असंतुलन पैदा करती है, बल्कि राष्ट्रीय एकता को भी जोखिम में डालती है।
गुलेन के आंदोलन ने मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में शैक्षिक विचारधारा को नया आयाम दिया है। जबकि उनका दृष्टिकोण सांस्कृतिक विविधता को सम्मिलित करता है, यह समझना आवश्यक है कि स्थानीय परम्पराओं के साथ उनका सामंजस्य किस हद तक बना रहता है।
फेतुल्लाह गुलेन की राजनीतिक सहभागिता को अक्सर एक वैकल्पिक शक्ति संरचना के रूप में चित्रित किया जाता है, जो तुर्की के मौजूदा लोकतांत्रिक ढांचे के साथ संघर्ष स्थापित करता है।
उनका तर्क है कि शिक्षा को नैतिक मूल्यों के साथ जोड़कर ही सामाजिक विकास संभव है, परन्तु इस दृष्टिकोण में राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा का खतरा निहित है।
ऐतिहासिक रूप से देखा गया है कि धार्मिक नेता जब राजनीतिक मंच पर कदम रखते हैं, तो शक्ति का द्वन्द्व अनिवार्य हो जाता है और इससे अधिनायकवादी प्रवृत्तियों का उद्गम संभव हो जाता है।
गुलेन की स्थापित संस्थाएँ जैसे 'जमन' और 'सामन्योलेक' ने बड़े पैमाने पर शिक्षा का प्रसार किया, परन्तु इन संस्थाओं के वित्तीय स्रोतों की पारदर्शिता पर सवाल उठाया गया है।
एर्दोआन सरकार ने इन संगठनों को सुरक्षा के लिए खतरा मानते हुए कड़े कदम उठाए, जिससे गुलेन के अनुयायियों का सामाजिक विश्वास कमजोर पड़ा।
वहीं, अंतरराष्ट्रीय मंच पर गुलेन की प्रतिष्ठा को सशक्त करने के लिये कई विदेशों में समर्थन जुटाने का प्रयास किया गया, जो राजनीतिक प्रभावशाली शक्ति को दर्शाता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के न्याय विभाग ने अंततः यह स्थापित किया कि गुलेन के तख्तापलट से जुड़े कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल सके, जिससे उनकी निरपराधता सिद्ध हुई।
इस तथ्य ने तुर्की सरकार के कदमों को वैधता के प्रश्नों के साथ उजागर कर दिया, क्योंकि बिना प्रमाण के एक व्यक्ति को आतंकवादी संगठित मानना अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के विरुद्ध है।
इसके अतिरिक्त, गुलेन के शैक्षणिक कार्यक्रमों में अक्सर सामुदायिक स्तर पर तनाव उत्पन्न हो जाता है, क्योंकि उनके विचारधारा में धार्मिक तत्व अत्यधिक प्रमुख होते हैं।
ऐसा करुणात्मक स्वरुप न केवल सामाजिक सद्भाव को बाधित करता है, बल्कि राष्ट्र के विभिन्न वर्गों के बीच आपसी समझ को भी विस्थापित करता है।
अतः यह आवश्यक है कि हम प्रतिबंधित विचारधाराओं के प्रति सतर्क रहें और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के सम्मान को प्राथमिकता दें।
राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिये, सभी शैक्षणिक संस्थाओं को राज्य की देखरेख में रहना चाहिए, जिससे उनका कार्य पारदर्शी और उत्तरदायी बन सके।
फिर भी, गुलेन के अनुयायियों की भावनात्मक जुड़ाव को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह शिक्षा के माध्यम से सामाजिक बदलाव की आशा रखते हैं।
इस द्वैत को समझते हुए, हमें संतुलित नीति बनानी होगी, जहाँ शिक्षा की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों को समान महत्व प्राप्त हो।
अंततः, फेतुल्लाह गुलेन की विरासत को इतिहास में तभी मान्यता मिलेगी जब यह स्पष्ट हो कि उनका योगदान सामाजिक प्रगति के अथवा विभाजन के लिये अधिक उपयोगी था।
गुलेन के अनुयायियों की पीड़ा को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि उनका संघर्ष केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक स्तर पर भी गहराई से जुड़ा है। इस दर्द को समझना और समर्थन देना हमारा सामाजिक दायित्व है।
गुलेन के कारज तोि वास्तव में एक पोलिसी नजेरिये से देखे जाने चाहिए।