इस साल पेरिस पैरालिंपिक्स 2024 के दौरान भारतीय तीरंदाजों ने अपनी कुशलता और संघर्ष का अद्भुत प्रदर्शन किया है। विशेषत: शीतल देवी और सरिता कुमारी के प्रदर्शन ने भारतीय समर्पित खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया है। शीतल देवी, जो सिर्फ १७ वर्षीय और बिना हाथों के तीरंदाजी करती हैं, इन खेलों में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय रहीं। उन्होंने अपने पैर की उँगलियों से तीर चलाकर पूरे विश्व को चौंका दिया।
महिला व्यक्तिगत कंपाउंड ओपन कैटेगोरी में शीतल देवी ने अपनी शुरुआत चिली की मरियाना ज़ुनिगा से की। मरियाना टोक्यो 2020 की रजत पदक विजेता और वर्तमान में विश्व में छठवें स्थान पर रैंकिंग रखती हैं। शीतल, जो इस समय विश्व में प्रथम स्थान पर हैं, ने पहले चरण में 29-28 के स्कोर के साथ बढ़त बना ली थी। हालांकि, उनके पांचवें तीर के एक 'सात' स्कोर के कारण मरियाना को दूसरे चरण के बाद स्कोर बराबर करने का मौका मिल गया।
मुकाबला पूरी तरह से कड़ा होता गया, और चार चरणों के बाद दोनों तीरंदाजों का स्कोर 111-111 पर बराबर था। अंतिम तीन तीरों में मरियाना ज़ुनिगा ने शीतल के 26 की तुलना में 27 अंक अर्जित कर मैच 138-137 से जीत लिया। यह शीतल के लिए एक दिल दहला देने वाला पहला पैरालिंपिक्स रहा, जिसमें वह बहुत करीबी मार्जिन से बाहर हो गईं।
दूसरी भारतीय तीरंदाज सरिता कुमारी की यात्रा भी प्रशंसनीय थी। राउंड ऑफ 16 में उन्होंने इटली की एलोनोरा सार्टी को 141-135 के स्कोर से मात दी। हालांकि, क्वार्टरफाइनल में वे तुर्की की उच्चतम वरीयता प्राप्त ओज़नुर क्योर के मुकाबले में हार गईं। ओज़नुर ने क्वालीफाइंग राउंड में 720 में से 704 अंकों का नया विश्व रिकॉर्ड बनाया था। सरिता ने जहां शानदार प्रदर्शन किया, वहीं ओज़नुर की तीरंदाजी के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
शीतल देवी ने क्वालीफिकेशन राउंड में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था। उन्होंने 703 अंक हासिल किए, जो ओज़नुर के रिकॉर्ड स्कोर 704 से सिर्फ एक अंक कम था।
इन प्रतियोगिताओं ने यह सिद्ध कर दिया कि पैरालिंपिक्स में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन न सिर्फ सराहनीय है बल्कि उन्होंने अपनी मेहनत और कौशल से दुनिया के विशाल मंच पर अपनी पहचान बनाई है। शीतल और सरिता, दोनों ही तीरंदाजी में नए मानक स्थापित कर रही हैं और उनके संघर्ष की कहानियां नई पीढ़ी को प्रेरणा देंगी।
पेरिस पैरालिंपिक्स 2024 भारतीय तीरंदाजी इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ने में सक्षम रहा। शीतल देवी और सरिता कुमारी की उल्लेखनीय संघर्ष-यात्रा इस बात का प्रमाण है कि चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी अटूट विश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ कैसे उत्कृष्टता की ओर बढ़ा जा सकता है। आने वाले वर्षों में इन युवा तीरंदाजों से और भी ऊंचाइयों को छूने की उम्मीद की जा सकती है।
भाई लोग, शीतल और सरिता की बातें सुनके लगता है कि भारत ने अब पैरालिंपिक्स में तीरंदाजी को पूरी तरह से दोबारा कोचिंग मॉडल बना दिया है, असल में उन्होंने कौन सा ब्रेसलेट इस्तेमाल किया जो पैर की उँगली से फोकस बड़ाता है, वो अक्सर लड़के नहीं जानते; साथ ही इस साल के क्वालिफिकेशन राउंड में कुल 3 इंडियन एथलीट टॉप 10 में रहे थे, तो डेटा थोडा देख लो।
पेरिस पैरालिंपिक्स 2024 में भारतीय तीरंदाज़ी की कहानी वास्तव में राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक है, शीतल देवी का अद्वितीय प्रदर्शन, विशेष कर वह बिना हाथों के भी तीर्थी कड़ी में भाग ले रही हैं, यह दर्शाता है कि सीमाएँ केवल मन में ही होती हैं, उनके पैर की उँगलियों से तीर चलाने की तकनीक, एक दशक से अधिक अनुसंधान एवं प्रयोग का परिणाम है, इस तकनीक को विकसित करने में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों ने बायोमैकेनिकल सेंसर, चिकनाई घटक और कस्टम एर्गोनोमिक डिवाइस का उपयोग किया, परिणामस्वरूप प्रत्येक तीर की गति, घुड़न और लक्ष्य पर सटीकता को नैनो‑स्तर पर मापा जा सकता है, सरिता कुमारी ने भी अपनी मेहनत से यह साबित किया कि निरंतर प्रशिक्षण और मानसिक दृढ़ता से बड़े प्रतिद्वंद्वी को भी मात दी जा सकती है, उनकी क्वार्टरफ़ाइनल हार के बावजूद, वह अपने पहले चरण में 141 अंक की शानदार स्कोरिंग के साथ दर्शकों का दिल जीत ली, बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि वह भविष्य में ओज़नुर के साथ पुर्तगाली को भी पीछे छोड़ सकती हैं, इस प्रकार, भारतीय तीरंदाज़ी की प्रशिक्षण प्रणाली अब विश्व स्तर पर तुलनीय बन गई है, राष्ट्रीय तीरंदाज़ी संघ ने भी आगामी वर्षों में इस मॉडल को अन्य पैरालिंपिक खेलों में लागू करने का प्रस्ताव रखा है, इस पहल से न केवल घरेलू स्तर पर प्रतिभा की पहचान होगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी भारत की स्थिति मजबूत होगी, यह सब संभव हो पाया है क्योंकि शीतल और सरिता दोनों ने अपनी व्यक्तिगत सीमाओं को तोड़कर सामाजिक बाधाओं को भी चुनौती दी, उनका संघर्ष नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन गया है, और यह दिखाता है कि अडिग इच्छा शक्ति से कोई भी बाधा अस्थायी ही होती है, यदि हम इस ऊर्जा को स्कूल‑स्तर के खेल कार्यक्रमों में समाहित करें तो हमारे भविष्य के एथलीटों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि देखी जा सकती है, अंत में, मैं यह कहना चाहूँगा कि भारत की तीरंदाज़ी यात्रा अभी शुरू ही हुई है, और आने वाले दिनों में हम और भी बड़े रिकॉर्ड तोड़ेंगे।
वाह! ये स्कोर तो हमारे पास के थाली पर पड़े रोटी जितने निकले।
हिंदुस्तान की शान यही है कि हमारे बुजुर्गों ने नहीं बल्कि ये युवा कौनसे लड़के सीढ़ी पर चढ़े हैं और दुनिया को दिखा रहे हैं कि हमारा नाम ही शक्ति है
पर भाई ये सब तो बकवास है असली बात तो ये है कि शीतल ने स्कोर तो जर्जर कर दिया लेकिन क्वालिफ़िकेशन राउंड में एक अंक पीछे रहना कोई बड़ी बात नहीं है, फिर भी लोग बड़ाई-भड़ाई में उलझे रहते हैं
यदि आप नियमों की बात करें तो पैरालिंपिक्स में व्यक्तिगत कंपाउंड ओपन में प्रत्येक एरो का अधिकतम स्कोर 10 होता है और चार चरणों में कुल 144 अंक तक की संभावना रहती है, इस आधार पर शीतल का 138 अंक काफी सराहनीय है
सही बात है, नियमों को समझना बहुत जरूरी है; लेकिन साथ ही एथलीटों को मानसिक प्रशिक्षक की भी जरूरत होती है, जो तनाव के समय में उन्हें सही फोकस दे सके; इसलिए कोचिंग सत्रों में श्वास‑व्यायाम, ध्यान और दृश्य‑ीमेजिनेशन को शामिल किया जाना चाहिए, नहीं तो सिर्फ स्कोर ही नहीं, आत्म‑विश्वास भी टूट सकता है;
एक बात तो साफ़ है कि अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज़ी आयोग के स्कोरिंग सॉफ्टवेयर में कुछ दुष्ट एल्गोरिद्म छिपे हो सकते हैं जो उन एथलीटों को हतोत्साहित करने के लिए बनाया गया है जो बिना हाथों के तीर चलाते हैं, इसलिए हमें इस पर गहन जांच करनी चाहिए