पश्चिम बंगाल में 'नबन्ना अभिजान' नामक एक बड़ी रैली की योजना बनाई गई है, जिसका उद्देश्य मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इस्तीफे की मांग करना है। इस विरोध प्रदर्शन का कारण है 9 अगस्त को आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक 31 वर्षीय महिला डॉक्टर की बलात्कार और हत्या की घटना। इस रैली का आयोजन पश्चिम बंग चात्र समाज द्वारा किया गया है, जो नबन्ना तक मार्च करने वाले हैं, जो पश्चिम बंगाल सचिवालय है और ये हावड़ा में स्थित है।
इस रैली की तैयारी में, कोलकाता पुलिस ने 6,000 से अधिक कर्मियों को तैनात किया है और सुरक्षा को कड़ा कर दिया है। इस क्षेत्र को किले जैसा बना दिया गया है, जहां 19 स्थानों पर बैरिकेड लगाए गए हैं और प्रमुख स्थानों पर पांच एल्यूमिनियम बैरिकेड भी लगाए गए हैं। इसके अलावा, कॉम्बैट फोर्स, हेवी रेडियो फ्लाइंग स्क्वाड्स (HRFS), रैपिड एक्शन फोर्स (RAF), क्विक रिएक्शन टीम्स (QRT), और पानी की तोपों को तैनात किया गया है ताकि किसी भी संभावित अराजकता को नियंत्रित किया जा सके।
नबन्ना के चारों ओर धारा 144 लागू की गई है, जिसके तहत पांच से अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध है। पुलिस ने इस विरोध प्रदर्शन के लिए किए गए आवेदनों को खारिज कर दिया, क्योंकि उसी दिन UGC-NET परीक्षाएं भी आयोजित की जा रही हैं और पुलिस का मानना है कि इस प्रदर्शन से सुरक्षा में खतरा हो सकता है और हिंसा की संभावना है।
दक्षिण बंगाल के पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक (ADG), सुप्रतिम सरकार ने बताया कि इस विरोध प्रदर्शन के आयोजन से जुड़े एक छात्र नेता ने कोलकाता के एक पांच सितारा होटल में एक प्रमुख राजनीतिक शख्सियत से मुलाकात की, जिससे इस रैली के इरादों पर संदेह पैदा हुआ है।
इस रैली से वाम दल और उनके छात्र संगठन खुद को अलग कर चुके हैं और इसे ‘बीजेपी-आरएसएस की चाल’ करार दिया है, जिसका मकसद डॉक्टर की हत्या से जनता के आक्रोश को भटकाना है। दूसरी ओर, बीजेपी ने इस रैली में किसी भी तरह की भूमिका से इनकार किया है। इस रैली के कारण कोलकाता के कई हिस्सों में, जिसमें प्रमुख सड़कों जैसे विद्यासागर सेतु, खिद्दरपुर रोड, और तारातला रोड शामिल हैं, ट्रैफिक प्रतिबंधों की उम्मीद है।
इस रैली के मद्देनजर पुलिस ने व्यापक सुरक्षा उपाय किए हैं। इन उपायों का उद्देश्य है कि रैली की वजह से शहर की शांति में कोई खलल ना पड़े। 19 स्थानों पर बैरिकेड लगाकर स्थिति को नियंत्रित किया गया है और अगर स्थिति बिगड़ती है तो पानी की तोपों का उपयोग भी किया जाएगा।
स्थिति पर कड़ी नजर रखने के लिए ऊपर वर्णित सुरक्षा उपाय तैनात किए गए हैं। पुलिस विभाग ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि विरोध प्रदर्शनों की अनुमति नहीं दी जा सकती है क्योंकि इससे शहर में अशांति और हिंसा की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके साथ ही धारा 144 की लगी पाबंदी के चलते किसी भी समूह को एकत्रित होने की इजाजत नहीं है।
इस रैली के कारण शहर के प्रमुख इलाकों में यातायात प्रभावित होने की भी संभावना है। विशेषकर वे रास्ते जो नबन्ना की ओर जाते हैं, वहां पर पाबंदियां लगाई गई हैं। Vidyasagar Setu, Khidderpore Road और Taratala Road जैसे प्रमुख मार्गों पर ट्रैफिक में बदलाव किए जा सकते हैं।
इस प्रकार, यद्यपि इस विरोध प्रदर्शन के पीछे का मकसद एक जघन्य अपराध का विरोध है, प्रशासन यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है कि नागरिक जीवन प्रभावित न हो। इस बीच, राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है जिसका अंत कब होगा, कहना मुश्किल है।
असहनीय सत्य, दिल की धड़कन को चीरता है 😢
भाई, सच्ची बात है, ऐसे ही आगे बढ़ते रहो, हम सब तुम्हारे साथ हैं! थोडा धैर्य रखो, फिर भी संभाल के चलो।
धारा 144 के तहत इकट्ठा होना गैरकानूनी है, और पुलिस की कार्रवाई इस नियम के उल्लंघन को रोकने के लिए अनिवार्य है।
बिल्कुल, यह रैली केवल एक सतही विरोध नहीं बल्कि एक जटिल शक्ति संतुलन का मंच है।
राजनीतिक विश्लेषकों ने पहले ही संकेत दिया था कि ‘नबन्ना अभिजान’ नामक आंदोलन को मनोवैज्ञानिक संचालन के रूप में देखा जा सकता है।
वास्तव में, यह प्रदर्शन एक बफ़र ज़ोन के रूप में कार्य करता है, जिससे मुख्य एजेंडा-डॉक्टर की हत्या-से ध्यान हटाया जा सके।
यह माइक्रो-एजेंडा शिफ्टिंग तकनीक अक्सर अधिनायकवादी शासन में प्रयोग होती है।
साथ ही, पुलिस की व्यापक सुरक्षा तैनाती एक प्रतीकात्मक इंटिमिडेशन का साधन भी है।
जैसे कि फोरेंसिक मॉडल में ‘डिटेन्शन ब्लॉब’ का प्रयोग किया जाता है, वैसे ही यहाँ भी ‘सुरक्षा कवच’ का निर्माण किया गया है।
धारा 144 की लागू करने की प्रक्रिया को देखते हुए यह स्पष्ट है कि वैध लोकतांत्रिक प्रतिबंधों का जादू यहाँ व्यावहरिक साजिश में बदल गया है।
विमानों की सघन तैनाती, जल पोकियों का उल्लेख, और हाई-टेक कम्युनिकेशन डिवाइस की तैनाती सभी एक सामरिक प्रोटोकॉल को दर्शाते हैं।
इन सबके पीछे एक ही लक्ष्य है-संभावित जुझारुपन को दबाना और जनता की भावनात्मक क्षमताओं को नियंत्रीत करना।
दूसरी ओर, विरोध के खिलाफ ‘बीजेपी-आरएसएस की चाल’ की अटकलें, मीडिया में प्रवाहित होने वाले नरेटिव को फ्रीज करती हैं।
मीडिया फ्रेमिंग द्वारा निर्मित ‘डिसकोर्स एजेंडा’ अक्सर सार्वजनिक राय को नियंत्रित करने का उपकरण बन जाता है।
इसी कारण से यह कहा जा सकता है कि वास्तविक असंतोष को ‘रैलियों’ की उछाल में ढका दिया गया है।
यदि इस परिप्रेक्ष्य को समझा जाए, तो सुरक्षा उपायों के पीछे की ‘आरोग्य संरक्षण’ की घोषणा मात्र एक प्रतीकात्मक कवच है।
समग्र रूप में, इस घटना में वैध अधिकारों और सुरक्षा की दुविधा सार्वजनिक नीति के दायरे को चुनौतियों से भर देती है।
इसलिए, नागरिकों को सतर्क रहना चाहिए और इस प्रकार की ‘शैलीगत’ प्रतिबंधों को गहरी जांच के बिना स्वीकार नहीं करना चाहिए।
हम सभी को इस त्रासदी के सामने अपनी नैतिक जिम्मेदारी नहीं भूलनी चाहिए; सतह पर दिखती सुरक्षा के पीछे अक्सर दमन की छाया छिपी रहती है।